निरंजन त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार
बाल विवाह एक अपराध है, लेकिन इसके लिए कानूनन दंडनीय है। राज्य के हर गांव में ग्राम कल्याण समिति ने दीवारों पर लिखवाया है, “बाल विवाह निषेध”। इसमें यह भी लिखा है कि 18 वर्ष से कम आयु की लड़की और 21 वर्ष से कम आयु के लड़के का विवाह कानूनन दंडनीय है। अगर कोई गैर-संरक्षक माता-पिता अपने बेटे या बेटी की शादी वयस्क होने से पहले करता है, तो उसे 1 लाख रुपये का जुर्माना और 2 साल की जेल होगी।

तने सख्त कानूनों के बावजूद राज्य में बाल विवाह हो रहा है। उपमुख्यमंत्री ने विधानसभा को बताया कि पिछले छह वर्षों में राज्य में 8,159 लोगों का बाल विवाह हुआ है। यहां प्रश्न यह उठता है कि क्या बाल विवाह कराने वाले अविवाहित माता-पिता को जेल या जुर्माने की सजा मिलनी चाहिए? इस प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं है।
अगर सजा नहीं होगी तो फिर कानून की क्या जरूरत है? यह आम बहस है कि जब हर गांव में आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ता हैं, तो उन्हें कैसे पता नहीं चल सकता कि गांव में बाल विवाह हो रहा है? इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि सरकार इस संबंध में सख्त कदम नहीं उठाती है तो कानून निष्क्रिय पड़ा रहेगा और बाल विवाह होते रहेंगे।